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नेता हों या संत ,दोनों का राग एक

Updated on 12-01-2025 05:46 PM


राकेश अचल

आप नेता से निराश होकर संत के पास जाएँ और वहां भी आपको निराशा हो तो आप कहाँ जायेंगे ? सवाल टेढ़ा है लेकिन इसका जबाब सीधा है कि आपको इन दोनों जमातों से सावधान रहना चाहिए। हमसे गलती ये हो रही है कि जब हम कम पढ़े-लिखे थे तब हमने देश की कमान विद्वान नेताओं के हाथों में दी थी और आज जब हम खूब पढ़-लिख गए हैं तब हम मूढ़ और कूढ़ मगज नेताओं को अपना भविष्य सौंप रहे हैं। आज के संत में भी इन्हीं नेताओं की भाषा बोलने लगे हैं। संतों के दिल भी समंदर जैसे नहीं रहे। वे भी हिन्दू-मुसलमान पर आ चुके हैं।

देश के शंकराचार्यों को मै क्या ,पूरा देश और दुनिया परम विद्वान मानती है ,किन्तु उनके वक्तव्यों से मुझे अब उनकी विद्व्त्ता पर संदेह होने लगा है। मेरे संदेह करने के अनेक कारण हैं। लेकिन इन कारणों पर बाद में बात करते हैं। पहले नेताओं और संतों के एक से सुरों को पहचानते हैं। आपने स्वामी अविमुक्तेश्वरानद सरस्वती का नाम सुना ही होगा। वे ज्योतिर्मठ द्वारिका पीठ के शंकराचार्य है। देश के चारों शंकराचार्यों में वे शायद सबसे कम उम्र के शंकराचार्य है। वे मुझसे भी उम्र में दस साल छोटे हैं।

प्रतापगढ़ के पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में 15 अगस्त 1969 को जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानद ने प्रयागराज में एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा कि-‘ भारत के मुसलमानों को या तो पाकिस्तान चले जाना चाहिए नहीं तो पाकिस्तान का फिर से भारत में विलय होना चाहिए।जो बात स्वामी जी ने कही है वो ही बात राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और भाजपा की पूरी फ़ौज आज से नहीं बीते 75 साल से कहती आ रही है। यानि स्वामी जी का चरित्र और आरएसएस का चरित्र एक जैसा है। दोनों आज भी हिन्दू-मुसलमान में उलझे हुए हैं और पूरे देश को इसी में उलझाए हुए हैं।

स्वामी जी का बाल सुलभ सवाल है कि जब धर्म के आधार हमारे देश के दो टुकड़े हो गए और मुसलमान वहां जाकर रहने लगे उसे इस्लामिक देश भी बना लिया. तो भी कुछ लोग यहां क्यों रह रहे हैं ? अब जब आपने अपना देश ले लिया तो बंटवारे के बाद मुस्लिमों को अपने देश में रहना चाहिए. बंटवारा भी हो गया और फिर भी हमारे घर में पैर पसार कर रह रहे हैं ? स्वामी जी से पूछिए की जिन लोगों ने विभाजन स्वीकार ही नहीं किया वे ही तो भारत में रह। कितने हिन्दू थे जो पाकिस्तान में रह गए, क्या उन्हें आजादी के बाद किसी भारत सरकार या शंकराचार्य ने भारत लाने के लिए कहा ? कौन ,कहाँ रहना चाहता है ये तो मन का सौदा है। दुनिया के कितने मुस्लिम और ईसाई देशों में हिन्दुओं ने रोजी -रोटी कि लिए पांव पसरे हैं ,क्या उन्हें भी उन देशों को बाहर कर देना चाहिए ?

मुझे स्वामी अविमुक्तेश्वरानद की मेधा पर पहले भी संदेह था और आज भी है । उनके ऊपर सरस्वती नहीं संघ की विचारधारा विराजती है। वे धर्म गुरु हैं या नेता ये समझना कठिन है। स्वामी जी के पूर्व के स्वामी जी स्वतंत्रता सैनानी थे ,कांग्रेसी विचारधारा के थे,अख्खड़ थे ,लेकिन उन्होंने भी कभी नहीं कहा कि भारत के मुसलमानों भारत छोडो। स्वामी स्वरूपानद सरस्वती जी ने देश में साईँ बाबा की पूजा के नाम पर विवाद खड़ा किया था। बाद में तमाम शहरों से हिन्दूओ निष्ठ संगठनों ने साईं बाबा की मूर्तियों को नजरबंद कर दिया था। लेकिन ये स्वामी तो अपने गुरु से भी दो कदम आगे निकल गए। जाहिर है कि इनके मन में भी जातिवाद का जहर भरा हुआ है। इनके भीतर भी संतों के मन में स्वाभाविक रूप से होने वाली उदारता नहीं है। ये न नवनीत कि समान हैं और न चंदन कि समान।

हमारे शंकराचार्य परम् और उद्भट विद्वान हैं लेकिन विश्व बंधुत्व और बसुधैव कुटुंब के सिद्धांत को शायद न जानते हैं और न मानते हैं। वे हिन्दू और मुसलमान मानते और जानते हैं। वे धर्मध्वजाएं उठाकर विश्व का भ्रमण करने का साहस नहीं रखते । वे यहीं धूनी रमाकर बैठे हैं। यदि उन्होंने विश्व भ्रमण किया होता तो आज उन्हें हिन्दू धर्म खतरे में है, का राग नहीं अलापना पड़ता। दरअसल हिन्दू धर्म खतरे में न पहले था और न आज है और न कल होग। असली खतरा तो इन पीठों ,मठों और अखाड़ों को है ,जो एक अनुत्पादक प्रकल्प हैं। देश उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता ,यदि दे रहा होता तो ये बाबे पिछले आम चुनाव में भाजपा को 400 पार न करा देते।

मुझे ये कहने में कोई संकोच या भय नहीं है कि हमारे देश में बाबाओं की फ़ौज हमारी युवा पीढ़ी को वैज्ञानिक दृष्टि देने के बजाय उन्हें पोंगा पंडित बनाने कीउधेड़बुन में हैं। कुम्भ में ही 13 साल की राखी सिंह धाकरे को [जो कि पढ़-लिखकर आईएएस बनना चाहती थी] जूना अखाड़े में शामिल करने की कोशिश की गयी। जैसे ये संत-महंत और महामंडलेश्वर हमारी युवा पीढ़ी का बड़ा गर्क कर रहे हैं वैसे ही हमारे राजनीतिक दल कर रहे है। भाजपा तो इस काम में अग्रणीय है। उसने तो दस साल में अंधभक्तों की एक ऐसी फ़ौज तैयार कर ली है जिसके पास वैज्ञानिक दृष्टि का घोर अभाव है।

बाबा यानि भगवा फ़ौज और देश के भाग्यविधाता मिलकर देश को दुनिया से प्रतिस्पर्द्धा के लायक बनाने के बजाय देश को सौ साल पीछे धकेलने में लगे हैं। हमारी सरकारें पहले से धर्मभीरु है। जनता के टैक्स का पैसा धार्मिक कॉरिडोर बनाने पर खर्च किया जा रहा है जबकि देश को अच्छे स्कूलों,अस्पतालों ,अनुसन्धान केंद्रों की जरूरत है ,लेकिन मजाल कोई इस बारे में सोचे। अभी उज्जैन में धर्म के नाम पर निजामुद्दीन कालोनी के 257 घर जमीदोज कर दिए गए। इस मुद्दे पर न देश की अदालत बोली और न ये बावरे शंकराचार्य।

हमारे शंकराचार्य गरीबों के संरक्षक नहीं है। इनकी पालकियां और सिंघासन भी अम्बानियों के यहां पहुँच जाते हैं। आपने किसी शंकराचार्य को किस झुग्गी बस्ती में जाते देखा है। चित्रकूट के एक शंकराचार्य हैं ,वे तो मुसलमानों को छोड़िये ब्राम्हणों में ऊँच -नीच का हिसाब रखते हैं। एक बिहारी शंकराचार्य हैं। हमारे फिल्म अभिनेता संजय मिश्रा की तरह मुंह फट है। सादगी से रहते हैं लेकिन उनका दिल भी हिन्दू-मुसलमान से बाहर नहीं आया। एक शंकराचार्य डॉ मन मोहन सिंह की तरह कम बोलते हैं ,इससे उनकी विद्व्त्ता बेनकाब नहीं होती। इन शंकराचार्यों की वजह से ही देश में राम के नाम पर राजनीति हो जाती है और इन्हें दूध में पड़ी मख्खी कीतरह निकलकर फेंक दिया जाता है ,लेकिन ये कुछ नहीं कर पाते। कर भी नहीं सकते क्योंकि गाल बजाने के अलावा इन्हें कुछ और शायद आता ही नहीं है।

मुझे पता है कि आज इस आलेख के बाद मेरे विरुद्ध खड़े होने वालों की संख्या में इजाफा होगा,किन्तु मैं साफ़ कर दूँ कि मेरा किसी भी धर्म गुरु के अपमान का कोई इरादा नहीं है। मेरी उनमें शृद्धा हो या न हो लेकिन देशवासियों की शृद्धा है। इसलिए मेरी अपेक्षा है की वे धर्म को राजनीति से अलग रखें। नेताओं जैसे बयान न दें अन्यथा जनता में भ्रम की स्थितियां पैदा होंगी और उनकी गरिमा कम होगी। मैं सनातनी हिन्दू,पक्का राष्ट्रवादी हूँ लेकिन जात-पांत से ऊपर। हिंदू-मुसलमान करने में मेरा कोई यकीन नहीं है। आपकी असहमतियां मेरे लिए शिरोधार्य है किन्तु वे मेरा मत-अभिमत नहीं बदल सकतीं। मैं किसी की निजी आस्था कि खिलाफ एक शब्द भी नहीं कह सकता। मेरे घर में भी सुबह -शाम आरती और पूजा होती है ,लेकिन इससे मुझे किसी दुसरे धर्म कि प्रति घृणा करने का संस्कार नहीं मिला ।

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