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करवा प्रधान महिलाओं का देश भारत

Updated on 20-10-2024 01:14 PM
भारत कृषि प्रधान देश बचा है या नहीं लेकिन भारत ' करवा ' प्रधान देश अवश्य है । इस देश में महिलाएं भी करवा प्रधान हैं। महिलाओं का आपने पति और बच्चों के प्रति समर्पण न केवल परिवार को बल्कि बाजार को भी लगातार शक्ति प्रदान कर रहा है। मुझे लगता है कि यदि भविष्य में भारत की अर्थ व्यवस्था 5 ट्रिलियन की हुई तो इसमें हमारी लोकप्रिय सरकार कि साथ ही हमारी करवा प्रेमी महलाओं का बड़ा हाथ होगा।
दरअसल न होते हुए भी और शादी-शुदा मर्दों की तरह मै भी एक ' करवा ' हूँ । करवा मिटटी का भी होता है और शक़्कर का भी । करवा आजतक नमक का नहीं बना। करवा पति का प्रतीक है। इसमें एक टोंटी भी होती है । आजकल करवे ब्रांडेड आने लगे हैं ,इसलिए कुम्हारों के करवों पर ठीक वैसा ही संकट मंडरा रहा है जैसा भारत और कनाडा के रिश्तों पर। संयोग से अभी करवा उद्योग पर ए-1 ,ए -2 की नजर नहीं पड़ी अन्यथा करवा भी ,कभी का इनका हो गया होता किसानों की मंडियों की तरह। ए-1 और ए-2 कोई भी चीज बेचने का हुनर जानते है। वे किसी दिन मुल्क बेचने लग जाएँ तो हैरान मत होइएगा।
बहरहाल बात करवा और उससे जुड़ी चौथ की हो रही है । इस महानतम और पवित्रतम यानि पाकीजा व्रत का सृजक कौन है ,मै नहीं जानता । जानने की कोशिश भी की लेकिन जान नहीं पाया । वेद-पुराण मैंने पढ़े नहीं हैं और ' गूगलेश्वर ' भी इस व्रत के बारे में उतना ही जानते हैं ,जितना की मै। इस कथा के बारे में किसी दिन फुर्सत में अपने अनुज मनोज श्रीवास्तव से पूछूंगा। वे चिर विद्वान सेवानिवृत नौकरशाह हैं और आज भी सरकार की सेवा कर रहे हैं। मैंने अपनी माँ को भी करवा चौथ का व्रत करते देखा है जबकि मुझे पता था कि उनकी उनके करवे से जीवन भर अघोषित अनबन रही। गांव में मैंने किसी को करवा चौथ का व्रत करते नहीं देखा था । कम से कम बूढी हो चुकी सुहागिन महिलाओं को तो बिलकुल नहीं। फिर भी उनके करवे शतायु होते दिखाई दिए। हालाँकि जिन देशों की महिलाएं ये कठिन व्रत नहीं करतीं उनके करवे भी लम्बी उम्र पाते हैं।  
भारत की महिलाओं को अपने पति और संतान की फ़िक्र सरकार से भी ज्यादा होती है। वे अपने पति की लम्बी उम्र के लिए केवल करवा छठ का ही नहीं बल्कि तीज का भी व्रत करतीं है। संतान के लिए संतान सप्तमी का व्रत है। महिलाएं कभी तुलसी पूजती हैं तो कभी आंवला। पुरुषों को इन सबकी परवाह करते कभी देखा नहीं। हमारे महान विद्वानों ने लगता है कि पुरुषों के लिए ऐसे कठिन व्रत रचे ही नहीं। आखिर ये व्रत कथाएं रचने वाले भी तो पुरुष ही है। वे क्यों किसी लफड़े में पड़ने लगे। वे पुजना जानते हैं लेकिन पूजना नहीं जानते या पूजना नहीं चाहते।
देश में मेरे जन्म से पहले टीवी नहीं आया था और मेरे युवा होने तक टीवी की पहुँच भी कम थी और वो रंगीन भी नहीं था,इसलिए करवा चौथ व्रत पर भी इसका कोई असर नहीं हुआ था, किन्तु जब से टीवी की पहुँच सेटेलाइट के जरिये टीवी सेट्स से भी आगे मोबाइल के जरिये दूर-दूर तक पहुंची है ,तब से करवा चौथ व्रत भी रंगीन ही नहीं बल्कि संगीन हो गया है। करवा चौथ से ठीक पहले टीवी हो या मोबाईल ,अखबार हों या पत्रिकाएं करवाप्रेमी महिलाओं के लिए हीरे से लेकर सोने तक के आभूषण की नयी रेंज परोसना शुरू कर देते हैं। साडी वाले साड़ियां ,घड़ियों वाले घड़ियां लेकर ऐसे ललचाते हैं कि बेचारे करवे का बजट ही बिगड़ जाता है। यदि खरीदारी न करवाए तो उसका अपनी पत्नी के प्रति प्रेम संदिग्ध हो जाता है ,क्योंकि विज्ञापनों [ जिंगल्स ]की ' पंच लाइन ' ही होती है कि - जो अपनी बीबी से करे प्यार ,वो खरीदारी से कैसे करे इंकार ' ?न खरीदो तो आफत और खरीदो तो डबल आफत।
पिछले कुछ वर्षों से मै देख रहा हूं कि अब करवा चौथ पर सजने-सजाने की भी स्पर्धा शुरू हो गयी है । फेसियल से लेकर मेंहदी तक,सदियों से लेकर गहनों तक ये सजावट प्रतियोगिता चल रही है। सरकार भले ही नौजवानों और नौजवानियों को रोजगार न दे पा रही हो लेकिन इस करवा छठ व्रत ने सरकार का काम कर दिखाया है। कभी-कभी शक होता है कि इस सबके पीछे बाजार के साथ ही कहीं अपनी सरकार भी तो नहीं खड़ी ?
समय के साथ करवा चौथ हो या तीज या बिहार वाली छठ पूजा सभी का चरित्र तेजी से बदला है । अब देश के अनेक हिस्सों में पत्नी प्रेमी पुरुष खासकर नौजवान जिन्होंने प्रेम विवाह किया होता है वे अपनी पत्नियों के त्याग को देखकर करवा छठ के दिन खुद बहुद भी निर्जला व्रत रहने लगे हैं । ये काम हालाँकि शर्मा-शरमी और बेशर्मी के चलते शुरू हुआ है ,लेकिन हुआ तो है । हम इस शुरुवात का स्वागत करते हैं। हमारे भीतर तो अपनी पत्नी जितनी कूबत नहीं की पूरे दिन निर्जला रहा सकें ,इसलिए हमने कभी ये व्रत नहीं किय। उलटे अपनी ' करवी ' से ही सुबह की चाय बनवाकर पी ली। चाय कोई ' अमरमूल ' [ बुंदेली में अमृत की जड़ ] नहीं है लेकिन इसकी लत देश के बहुसंख्यक करवों और करवियों को भी है। आजकल तो बच्चे भी चाय के शौकीन हो गए हैं।
मै महिलाओं यानी करवियों के इन तमाम व्रतों को देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनौती देना चाहता हू। मेरा मानना है कि ये असंवैधानिक हैं। इनका हमारे संविधान में कहीं कोई जिक्र नहीं है। इसलिए इन पर महिलाओं के हित में रोक लगाईं जाये । दरअसल हाल ही में हमारी न्याय की देवी के हाथ से तलवार हटाकर संविधान की प्रति पकड़ाई गयी है ,इसलिए मुझे लगता है कि अदालत इस नए विषय पर मेरी याचिका ग्राह्य कर सरकार को नोटिस दे सकती है। अदालत तो अदालत है ,हो सकता है कि मेरी याचिका उसी तरह ख़ारिज कर दे जिस तरह ईवीएम के बारे में दायर तमाम याचिकाओं को खारिज किया जा चुका है। आखिर कौन सी अदलात होगी जो अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारना चाहेगी । अदालतों में भी तो बहुसंख्यक करवे ही आसीन होते है। वकील भी करवे हैं और माननीय जज साहिबान भी करवे ही है। अपने-आपने घर में सभी पूजे जाते हैं। कम से कम 365 दिन में करवा चौथ और तीजा के दिन तो उनकी भी पूछ-परख होती है।
हमने पता है कि हमारी धर्मभीरु सरकार नारियों के लिए बने इस तरह के तमाम तीज -त्यौहारों का विरोध नहीं कर सकत। सरकार सनातनी है। सरकार नारी शक्ति वंदन करताी है। सरकार तो उलटे व्रती महिला कर्मियों को ही नहीं बल्कि उनके पतिओं कोभी इस दिन छुट्टी दे देती है । सरकार छुट्टी न भी दे तो कैलेंडर छुट्टी करा देता है। सब जानते हैं कि इन कठिन व्रतों के लिए महिलाओं को अवकाश देना कितना पुण्य का कार्य है । मानवाधिकारों का इन व्रतों से कुछ लेना देना नहीं है भले ही शरीर में पानी की कमी से व्रती महिलाओं के प्राणों को कोई संकट ही पैदा क्यों न हो जाये ? हमने तो छठ पूजा और करवा छठ पर श्रीमती रेवड़ी देवी को ही नहीं हमारी पूर्व विदेशमंत्री सुषमा स्वराज को भी व्रत करते और नख-शिख सजते संवरते देखा है।
पतियों की लम्बी उम्र कि लिए व्रत रखने वाली विदुषियों कि प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है । मै समस्त सुहागिनियों का सम्मान भी करता हूँ । मै उनका भी आभारी हूँ जिन ज्वेलर्स और पार्लर वालों ने करवा चौथ व्रतधारी महिलाओं कि लिए मुफ्त में मेंहदी शृंगार और चाय-नाश्ता की व्यवस्था की है। कम से कम करवों का कुछ तो पैसा बचा ! मेरी उन करवों कि प्रति भी हार्दिक सहानुभूति है जो करवा चौथ कि दिन या इसकी पूर्व संध्या पर हजारों रूपये से कटे। मै अपनी महिला पाठकों से भी विनम्रतापूर्वक अग्रिम क्षमा याचना करता हूँ और निवेदन करता हूँ कि वे मेरे विचारों को लेकर उद्वेलित न हों । आखिर मै भी तो किसी का करवा हूँ।
@ राकेश अचल

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