अनेक ऋषि और संतों द्वारा किए गए निरंतर अनुसंधान से विकसित हुई है भारतीय ज्ञान परंपरा - राज्यसभा सांसद महंत श्री उमेशनाथ जी
Updated on
20-11-2024 08:49 PM
अनेक ऋषि और संतों द्वारा किए गए निरंतर अनुसंधान से विकसित हुई है भारतीय ज्ञान परंपरा - राज्यसभा सांसद महंत श्री उमेशनाथ जी
भारतीय ज्ञान परंपरा की आवश्यकता संपूर्ण विश्व को है - डॉ जय वर्मा, यूके
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भारतीय ज्ञान परंपरा: वर्तमान प्रासंगिकता पर हुआ विमर्श, डॉ जय वर्मा और श्री राजेश सिंह कुशवाह अक्षरवार्ता शिखर सम्मान से अलंकृत
अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी एवं अवार्ड 2024 समारोह में देश के विभिन्न राज्यों से आए शिक्षाविद और शोध अध्येता अक्षरवार्ता अंतरराष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित
संस्था कृष्ण बसंती, उज्जैन एवं अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षर वार्ता द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी एवं अक्षर वार्ता अंतरराष्ट्रीय अवार्ड 2024 समारोह का आयोजन कालिदास संस्कृत अकादमी में 20 नवम्बर को किया गया। संगोष्ठी का विषय भारतीय ज्ञान परंपरा की वर्तमान प्रासंगिकता : साहित्य, शोध एवं संस्कृति तथा विभिन्न विषयों के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में रखा गया था। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी और सम्मान समारोह का उद्घाटन 20 नवंबर, बुधवार को प्रातः समारोह के मुख्य अतिथि वाल्मीकि पीठाधीश्वर एवं राज्यसभा सांसद बाल योगी महंत श्री उमेशनाथ जी महाराज के करकमलों से हुआ। उद्घाटन समारोह में सारस्वत अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जय वर्मा, यूके, अध्यक्ष कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज, विशिष्ट अतिथि कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेश सिंह कुशवाह, प्राचार्य डॉ हरीश व्यास, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ रमण सोलंकी आदि ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जय वर्मा, यूके एवं वरिष्ठ समाजसेवी श्री राजेश सिंह कुशवाह को उनके विशिष्ट योगदान के लिए अक्षरवार्ता शिखर सम्मान 2024 से अलंकृत किया गया। समापन समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाजसेवी एवं भाजपा के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता डॉ दीपक विजयवर्गीय, भोपाल, समय जगत समूह के प्रमुख श्री अशोक त्रिपाठी भोपाल एवं श्री रमण तिवारी थे।
मुख्य अतिथि श्री वाल्मीकि धाम पीठाधीश्वर एवं राज्यसभा सांसद बाल योगी महंत श्री उमेश नाथ जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस देश के इतिहास को गहराई से जानने की आवश्यकता है। ज्ञान, ध्यान और विज्ञान को जाने बिना जीवन की सार्थकता नहीं है। भारतीय ज्ञान परंपरा अनेक ऋषि और संतों के द्वारा किए गए निरंतर अनुसंधान से विकसित हुई है। भारतीय चिंतन में शब्द या अक्षर की महिमा है। सभी शास्त्र उसी के आधार पर विकसित हुए हैं। ऋषि परंपरा के ज्ञान रूपी प्रसाद को नई पीढ़ी के मध्य प्रसारित करने का प्रयास इस संगोष्ठी को सार्थकता दे रहा है। इलेक्ट्रॉनिक क्रांति के दौर में चिंतन की दिशा उलझ गई है, जिससे मुक्ति का मार्ग भारतीय जीवन शैली दिखा सकती है।
नॉटिंघम, यूके की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जय वर्मा ने कहा कि भारत और भारतीय ज्ञान परंपरा की आवश्यकता संपूर्ण विश्व को है। प्राचीन ज्ञान में जीव, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, मनुष्य के कर्म आदि की गंभीर व्याख्या की गई है। पूरी दुनिया को भारतीय ज्ञान परंपरा ने महत्वपूर्ण सूत्र दिए हैं।
कुलगुरु डॉ अर्पण भारद्वाज ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा अनंत और अथाह है। समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान - सभी का समावेश प्राचीन भारतीय साहित्य में दिखाई देता है। भारत की रसायन विद्या, धातु कर्म, स्वास्थ्य आदि से जुड़े विज्ञान सदियों पहले भारत में विकसित हुए। नैनो पार्टिकल्स की चर्चा प्राचीन आयुर्वेद में मिलती है।
संगोष्ठी के मुख्य समन्वयक एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय ऋषियों ने सदियों से सूचना और ज्ञान से आगे जाकर प्रज्ञा और सत्य की खोज पर बल दिया। हमारी ज्ञान प्रणाली वैचारिक चिंतन के साथ रचनात्मक कल्पना शक्ति के विकास का अवसर देती है। लिखित और वाचिक - दोनों परम्पराएँ भारत की अक्षय ज्ञान सम्पदा के आधार में हैं। वैदिक साहित्य ज्ञान - विज्ञान की समृद्ध विरासत का विश्वकोश है।
डॉ रमण सोलंकी ने कहा कि भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा को विभिन्न संग्रहालयों में देखा जा सकता है। उज्जैन हजारों वर्षों से कालगणना का केंद्र रहा है। भारतीय संवत की परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। उज्जैन एवं डोंगला अंतरराष्ट्रीय काल गणना के केंद्र हैं।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाजसेवी डॉ दीपक विजयवर्गीय, भोपाल ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा लाखों वर्ष पुरातन है। भारतीय ज्ञान परंपरा में अद्भुत खजाना है। प्राचीन युग में विज्ञान की उपलब्धियां को लेकर निरंतर शोध की आवश्यकता है।
समय जगत समूह के प्रमुख श्री अशोक त्रिपाठी, भोपाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में सबकी भलाई और सुख की कामना की गई है। इस परंपरा के महत्वपूर्ण मूल्य ही विश्व में शांति स्थापित कर सकते हैं। प्रकृति के साधनों का सर्वहित में प्रयोग करना सनातन धर्म का मूल प्रयोजन है।
डॉ रमण तिवारी भोपाल ने कहा कि संवाद के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा आज तक पहुंची है। योग ब्रह्म और जीव के संबंधों की व्याख्या करता है। आज के संदर्भ में कर्म योग की महती आवश्यकता है।
प्राचार्य डॉ हरीश व्यास ने कहा कि जनजातीय बन्धुओं को स्वास्थ्यवर्धक वनस्पतियों का ज्ञान सदियों से रहा है। भारतीय ज्ञान परंपरा से दूर करने के अनेक षड्यंत्र किए गए, जिसे समझने की आवश्यकता है।
प्रारम्भ में स्वागत भाषण एवं कार्यक्रम की रूपरेखा संस्थाध्यक्ष एवं सम्पादक डॉ मोहन बैरागी ने प्रस्तुत की।
तकनीकी सत्र में देश के विभिन्न भागों से आए विशेषज्ञ और शोध अध्यताओं ने अपने शोध पत्रों का वाचन किया। इनमें सुश्री वर्षा कुमारी, नालंदा, बिहार, सुश्री प्रियंका भटेवरा जैन, डॉ अभिलाषा शर्मा, डॉ रूपा भावसार, डॉ मोहन पुरी, नरसिंहगढ़ आदि सम्मिलित थे। डॉ रूपा भावसार की पुस्तक इलेक्ट्रॉनिक हिंदी पत्रकारिता की समीक्षा डॉक्टर नेत्रा रावणकर ने प्रस्तुत की।
कार्यक्रम में डॉ रूपा भावसार के ग्रंथ इलेक्ट्रॉनिक हिंदी पत्रकारिता: वर्तमान स्थिति और संभावनाएं, डॉ संजय कुमार बिहार की काव्य कृति रश्मिपथ एवं अक्षरवार्ता शोध पत्रिका के नवीन अंकों का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों द्वारा वाग्देवी की के तैल चित्र पर माल्यार्पण अर्पित कर पूजन किया गया।
अतिथियों का स्वागत कृष्ण बसंती संस्था के अध्यक्ष डॉ मोहन बैरागी, डॉ प्रभु चौधरी, महिदपुर, डॉ भेरूलाल मालवीय, शाजापुर, डॉ अजय शर्मा, श्री ओ पी वैष्णव, श्री पवन तिवारी, इंदौर, श्री प्रेम कुशवाह, भोपाल, डॉ श्वेता पंड्या, डॉ महिमा मरमट, आराध्य बैरागी, अद्वैत बैरागी आदि ने किया।
कार्यक्रम में देश के विभिन्न भागों से आए शिक्षाविदों और शोध अध्यताओं को अंतर्राष्ट्रीय अक्षर वार्ता अवार्ड से सम्मानित किया गया सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र, शील्ड, पदक एवं प्रशस्ति पत्र अर्पित किए गए। अक्षर वार्ता अंतरराष्ट्रीय अवार्ड 2024 अलंकरण समारोह तथा अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जनों, शिक्षकों एवं शोधकर्ताओं ने भाग लिया।
संगोष्ठी का संचालन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन श्री ओ पी वैष्णव ने किया। इस समारोह में भाग लेने के लिए देश विदेश के अनेक विद्वान और अध्येता उज्जैन आए थे।
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