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विष्णुदेव सरकार के राज में छत्तीसगढ़ की जनता को आखिर कब मिलेगा न्याय?

Updated on 17-10-2024 05:22 PM
विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन

कांग्रेस की भय-भ्रष्टाचार-दमन-अत्याचार की 05 साल की सरकार के मुख्य साजिशकर्ताओं पर कब होगी कार्यवाही?
क्या असली सरकार है बैच ऑफ 2005?
साय सरकार पर हावी होती नौकरशाही
कांग्रेस को बैठे बिठाए मुददे परोस रही बीजेपी सरकार

छत्तीसगढ़ की भूपेश राज वाली भय-भ्रष्टाचार-दमन-अत्याचार वाली सरकार का अंत हुए अब कोई 10 महीने हो गए हैं, पर छत्तीसगढ़ की जनता पूछ रही है आखिर कब होगा न्याय। महादेव सट्टा घोटाला, शराब घोटाला, कोयला या डीएमएफ घोटालों के पर्दे के पीछे के असली मास्टरमाइंड आखिर कब जेल जाएंगे। इन सभी घोटालों के तार तब के मुख्यमंत्री और उनके करीबियों तक जाते थे, पर अभी तक उन पर कोई ठोस कार्यवाही होती नहीं दिख रही है। अलबत्ता सरकार का ईओडब्ल्यू और एसीबी विभाग सिर्फ प्यादों पर कार्यवाही करने में लगा है बस एक एफआईआर करके पूर्व मुख्यमंत्री को अभयदान दे दिया गया है। हास्यास्पद बात यह है कि पिछले कोई 10 महीने में ईओडब्ल्यू और एसीबी सिर्फ पुराने प्रकरणों में दागियों को अभयदान दे रहा है, जैसे कि रिटायर्ड आईपीएस मुकेश गुप्ता एवं अन्य को अवैध तरीके से फोन टैपिंग प्रकरण एवं अन्य प्रकरणों को अवैध रूप से नस्तीबद्ध कर दिया गया है। ईओडब्ल्यू और एसीबी अपनी ही बिरादरी के आईपीएस अधिकारी जो पूर्व सरकार के घोटालों में शामिल रहे हैं उन पर तो कोई कार्यवाही करते नहीं दिख रही है, यह वही अधिकारी थे जिन्होंने उस समय भाजपा कार्यकर्ताओं एवं नेताओं पर कहर बरपाया था। यह सब आज बड़ी ही बेशर्मी से वह सब भुला दिया गया है। 10 महीने की भाजपा सरकार में बड़ा प्रश्न यह उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ की असली सरकार कौन है। क्या भारत का सबसे अमीर आदमी दिल्ली में बैठकर सरकार चलवा रहे हैं या बैच ऑफ 2005 असली सरकार है। छत्तीसगढ़ सरकार में सभी लोग पॉवरफुल नजर आ रहे हैं और सभी अपनी मनमर्जियां से सरकार चला रहे हैं। जैसे मोदी जी का कैंपेन था हर घर तिरंगा वैसे ही छत्तीसगढ़ में हर मंत्री, बैच ऑफ 2005, उद्योगपति समेत हर कोई मुख्यमंत्री नजर आ रहा है।

*छत्‍तीसगढ़ में नौकरशाही पर साय सरकार कस रही शिकंजा*
छत्तीसगढ़ में नौकरशाही पर एक बार फिर राज्य की बीजेपी सरकार ने अपना शिकंजा कस दिया है। राजनीति के जानकार तस्दीक करते हैं कि जिस तर्ज पर तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जूनियर अधिकारियों पर भरोसा कर सरकार का संचालन कर रहे थे ठीक उसी तर्ज पर मौजूदा बीजेपी सरकार की स्थिति बनती जा रही है। दो राय नही कि मोदी की गारंटी का एक बड़ा हिस्सा पूरा कर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में जनता की नज़रों में खरे उतरे हैं लेकिन नौकरशाही जिस तरीके से बीजेपी सरकार पर हावी है उससे साफ होता है कि एक बार फिर राज्य में कांग्रेस के दिन फिरने वाले हैं। मतलब साफ है यदि नौकरशाही के इशारों पर सरकार का संचालन आगे भी जारी रहा तो सरकार के सामने कई गंभीर चुनौतियां आ सकती हैं। जिसमें सरकार की साख पर बट्टा लगने के आसार बढ़ गये हैं। बताया जा रहा है कि राज्य में कांग्रेस को बैठै बिठाये जिस तरह से मुद्दे हाथ लग रहे हैं उसके चलते बीजेपी को विपक्ष के सामने जवाब देना मुश्किल हो रहा है। मुख्‍यमंत्री साय के 10 माह के कार्यकाल में कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिसमें कांग्रेस को अपनी राजनीति चमकाने का मौका बैठे बिठाये दे दिया है।

*सीमेंट के दाम बढ़ाकर बड़ी हुई कीमतें वापस लेना*
छत्तीसगढ़ सीमेंट उद्योग के लिए हब साबित हुआ है। राज्य में शायद ही कोई ऐसी नामी गिरामी उत्पादक कम्पनी न हो जिसका प्लांट कार्यरत न हो। हाल ही में सीमेंट कार्टेल कंपनियों ने इसके दाम में एक मुश्त 50 रुपये की बढ़ोत्तरी कर दी थी। राज्य में यह पहला मौका था जब सीमेंट के बाद में एक मुश्त 5-10 रुपये नही बल्कि सीधे तौर पर 50 रुपये की बढोत्तरी की गई थी। इस बढोत्तरी के खिलाफ कांग्रेस ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया था। देखते ही देखते सरकार ने 45 रुपये की मूल्य की वृद्धि वापस ले ली। मात्र 05 रुपये की बढ़ोत्तरी को सीमेंट कॉर्टेल कंपनियों द्वारा स्वीकार किया गया। ऐसे में विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है कि प्रति सीमेंट बैग 45 रुपये आखिर किसके जेब में जाने वाले थे। कांग्रेसी नेता चरणदास महंत के मुताबिक सीमेंट उत्पादक कंपनियों से सालाना करोड़ों की उगाही का प्लान तैयार किया गया था। महंत की मुताबिक कांग्रेस के दवाब में बीजेपी सरकार ने बड़ी हुई दरें वापस ले ली। हालांकि सीमेंट के दाम में अचानक 50 रुपये बढ़ोतरी के खिलाफ रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने भी केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर बड़ी हुई दरें वापस लेने की मांग की थी। उन्होंने भारत सरकार को लिखे पत्र में स्पष्ट किया था कि सीमेंट के दाम बढ़ने से आम नागरिकों के घरों के निर्माण का सपना आधा अधूरा रह जायेगा। इसका सीधा असर प्रधानमंत्री आवास योजना पर भी पड़ेगा। गरीबों और आम नागरिकों के लिए घर बनाना महंगा साबित होगा। इस मुद्दे पर बीजेपी सरकार पर विपक्ष भारी पड़ा है।

*स्टील उद्योगों को सालाना 300 करोड़ की सब्सिडी*
स्टील उद्योगों को 300 करोड़ की सब्सिडी रोकने के मामले में भी बीजेपी सरकार को फजीहत का सामना करना पड़ा है। राज्य सरकार को स्टील उद्योग को मिलने वाली सस्ती बिजली पर सब्सिडी फिलहाल रोक दी है। लेकिन गृहमंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाकर सब्सिडी वाले मामले को और अटका दिया है। यह भी तथ्य‍ सामने आया था कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्टील उद्योगों को सालाना 300 करोड़ की सब्सिडी देकर उनके संगठनों के माध्यम मोटा माल वसूल लिया करते थे। इस मामले में कांग्रेस की चाल में राज्य की सरकार बुरी तरह से फंस गई। कांग्रेस ने सब्सिडी यथावत जारी रखने के लिए सड़कों पर प्रदर्शन किया था लेकिन राज्य सरकार उद्योगपतियों और कांग्रेस को यह समझाने में विफल रही कि सब्सिडी किसी व्यक्ति तथा संस्था को सिर्फ एक बार दी जाती है। हर साल किसी भी उद्योग धंधे को बिजली मुहैया कराने में सब्सिडी नही दी जा सकती। उद्योग जगत के जानकार तस्दीक करते है कि स्टील उद्योगों को राज्य सरकार औद्योगिक इकाई निर्माण करने के दौरान पहले ही कई मामलों में सब्सिडी प्रदान कर चुके हैं। सरकारी तिजोरी पर सालना हाथ साफ करके इस मामले में शासन को 300 करोड़ हर माह गंवाने पड़ते थे। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री इसमें हिस्सेदार हो जाते थे। मुख्यमंत्री साय ने सरकारी तिजोरी पर सालाना पड़ने वाले भार को एक ही झटके में खत्म कर दिया। इस मामले में उनका अच्छा प्रयास भी सरकार को अपेक्षित परिणाम नही दिला सका। सब्सिडी का मामला अभी भी लटका होने के चलते बीजेपी की किरकिरी हो रही है जबकि कांग्रेस को सरकार को घेरने का मौका मिला है।

*कानून व्यवस्था पर पकड़ होना जरूरी*
छत्तीसगढ़ में साय सरकार की नौ माह के कार्यकाल को लेकर विपक्ष लगातार हमले कर रहा है। प्रदेश में बीजेपी सरकार के गठन के तीन माह भी पूरे नही हो पाये थे कि कांग्रेस में प्रदेश में कानून व्यवस्था बिगड़ने का मुद्दा उठाकर प्रदेश भर में प्रदर्शन किया था। बावजूद इसके कानून व्यवस्था में कसावट लाने में गृहमंत्री कमजोर साबित हुए। गृहमंत्री कानून व्‍यवस्‍था को संभालने में असफल हो रहे हैं। कानून व्‍यवस्‍था को बनाये रखने का काम गृहमंत्री का होता है। दूसरी ओर अधिकारियों के ट्रांसफर आमतौर पर नई सरकार के गठन के बाद जोरों पर होते हैं। लेकिन राज्य में न तो मुख्य सचिव बदला और न ही अलबत्ता तीन वर्ष पूर्व रिटायर्ड डीजीपी का कार्यकाल बढ़ाकर लगातार उपकृत किया जाता रहा। मौजूदा डीजीपी अशोक जुनेजा के बारे में स्पष्ट है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल द्वारा भी लगातार उपकृत होते रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री की हाँ में हाँ मिलाने के चलते मौजूदा बीजेपी सरकार में भी उनकी दखलअंदाजी बताई जाती है। नतीजन योग्य और वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी राज्य में संविदा पर डीजीपी पद पर बैठे हैं। कई जिलों के पुलिस अधीक्षक बेलगाम हैं। इन जिलों में अपराधिक घटनाओं को लेकर कानून व्यवस्था बिगड़ रही है। बालोदा बाजार के बाद कवर्धा में भी हत्याकांड और आगजनी जैसी घटनाएं सामने आयी हैं। इन मामलों को लेकर कांग्रेस हमलावर है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में नियुक्त मुख्य सचिव को अभी तक नही बदले जाने के चलते भी प्रशासनिक व्यवस्था ठीक नहीं हुई है। मंत्रालय में सरकार का कार्यकाल बाधित होने का कारण भी मंत्रालयों के गलियारों में अफसरों की जुबान पर है। बताया जाता है कि कई जिलों के कलेक्टर मनमानी पर उतर आये हैं। राज्य में बालोदा बाजार कांड और कवर्धा काण्ड को लेकर दोनों ही जिलों के कलेक्टर एसपी का तबादला कर राज्य सरकार ने त्वरित कार्यवाही की। लेकिन यह कार्यवाही भी महज खानापूर्ति साबित हुई। ऐसी नौबत क्यों आयी? इस ओर कोई मंथन नही किया गया। बताया जाता है कि प्रदेश में पहली बार कलेक्टर एसपी कांफ्रेंस से गृहमंत्री नदारद रहे। ठोस प्रशासनिक क्षमता का परिचय देने के बजाए फैसला लेने में देरी और कानूनी खामियां बरते जाने से कांग्रेस को कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने का मौका मिल रहा है। ऐसे मुद्दों को वो लपककर बीजेपी की राजनी‍ति पृष्ठभूमि पर हमले पर हमला कर रही है।

*जूनियर अधिकारियों का बोलबाला*
राज्य में बीजेपी सरकार को मुश्किल में डालने के मामले 2005 बैच के अखिल भारतीय सेवाओं के ''ज्वलनशील'' अधिकारियों की भूमिका सामने आयी है। जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ कतिपय प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली सुर्खियों में है। इन अफसरों के बीच पॉवर पालिटिक्स का सीधा असर कानून व्‍यवस्‍था पर पड़ते नज़र आ रहा है। राज्य सरकार के कामकाज पर निगाहें रख रहे कई पत्रकार तस्दी‍क करते हैं कि जूनियर अधिकारियों का समूह सीनियर अधिकारियों पर भारी पड़ रहा है। यही कारण है कि सत्ता और संगठन के बीच लगातार खाई खिंचती जा रही है। दरअसल विपक्ष में रहते बीजेपी ने जिन आल इंडिया सर्विस के अधिकारियों की शिकायत केन्द्र सरकार से तो कभी चुनाव आयोग से की। वही अफसर मौजूदा नौकरशाही में लूप लपट्टा साबित हो रहे हैं। पत्रकार तस्दीक करते हैं कि सरकार के कामकाज और फैसलों में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के विश्वास पात्र अधिकारियों का हस्तक्षेप लगातार बढ़ता जा रहा है। नतीजन राज्य सरकार के लिए उसका ही फैसला गले की फांस बनता जा रहा है। सरकार कई फैसलों को एक ओर मंजूरी देती है वहीं कांग्रेस के सड़कों पर उतरते ही उन फैसलों को वापस ले लेती है। बिलासपुर कमिश्नर के पद पर पहले एक अधिकारी की नियुक्ति के आदेश जारी होना, फिर चंद घंटों बाद उस आदेश का निरस्त हो जाना, फिर इस पद पर महिनों तक किसी दूसरे अफसर की नियुक्ति न होना राज्य की सरकार प्रशासनिक कमजोरी बयां कर रही है।

*मुख्‍यमंत्री साय के नेतृत्‍व में सफल रहा भाजपा सदस्‍यता अभियान* 
बहरहाल प्रदेश में बीजेपी एक बार फिर अपनी जड़े जमाने में जुटी है। रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव और आगामी नगरीय निकाय चुनाव को लेकर उठापटक जारी है। इस बीच सरकारी निगम मंडलों में नियुक्तियों का दौर भी शुरु हो गया है। राज्य महिला आयोग समेत अन्य निगम मंडलों में हो रहा मनोनयन बीजेपी के लिये उत्साहजनक साबित हो रहा है। ऐसे समय पार्टी की सदस्यता अभियान ने भी जोर पकड़ लिया है। चंद दिनों में ही बीजेपी ने ये सदस्यों की संख्या 36 लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है। लिहाजा माना जा रहा है कि जनता के बीच संतोषजनक साबित हुआ है।

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