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' दि साबरमती ' के बहाने प्रशंसा के पुल

Updated on 20-11-2024 02:27 PM
आजकल फ़िल्में देखने का शौक लगभग समाप्त हो गया है ,वैसे भी आजकल की   फ़िल्में समाज का सही चित्रण कर भी नहीं पा रहीं हैं,लेकिन 15  नवमबर को जारी एकता कपूर की फिल्म ' दि साबरमती ' देखने से खुद को रोकना मेरे लिए मुश्किल था ।  मुझे लगा कि इस फिल्म में कहीं न कहीं महात्मा गाँधी जरूर होंगे क्योंकि उन्हें ' साबरमती का संत ' कहा जाता था ,लेकिन मेरी धारणा के विपरीत ' दि साबरमती ' में साबरमती के संत के बजाय साबरमती  एक्सप्रेस का गोधरा कांड निकला।  मेरी समझ में नहीं आया कि दो दशक बाद इस विषय पर फिल्मबनाने की अक्ल एकता कपूर को कहाँ से आयी ?
पूरी फिल्म देखने के बाद मुझे तो लगा कि ये फिल्म भी आरएसएस और भाजपा के हिन्दू एजेंडे के तहत देश में नफरत फैलाने की एक घृणित कोशिश है ,लेकिन क्या कर सकते हैं आप ?एकता कपूर तो शायद जन्मी ही इसी काम के लिए है।  पहले वे धारावाहिकों के जरिये ये काम करतीं थीं और अब फिल्मों के जरिये ये काम कर रहीं हैं।  आजकल फिल्म निर्माताओं में नेताओं के महिमा मंडन की होड़ लगी है।  वे सच्चाई के नाम पर वो सब परोसना चाहते हैं जिससे समाज बंटे और कटे। फिल्म के अभिनेताओं से मुझे कोई गिला-शिकवा नहीं है ।  विक्रांत मैसी तो मेरे प्रिय कलाकार हैं।उनकी शक्ल-सूरत मेरे बेटे अतुल से मेल खाती है।  उन्होंने फिल्म में पैसों के लिए ही काम किया होगा। कलाकार पैसों के लिए ही काम करता है। वो कोई धर्मात्मा तो नहीं   है जो पहले के कलाकारों कि तरह अपने विवेक से काम ले।
भाजपा और आरएसएस का एजेंडा लेकर एकता कपूर से पहले विवेक अग्निहोत्री साहब भी दि कश्मीर फ़ाइल ' बना ही चुके है।  ये फिल्म विखंडित हो चुके जम्मू-काश्मीर में आतंकवाद और हिन्दू उत्पीड़न को लेकर बनाई गयी थी। केरल को लेकर भी ऐसी ही फिल्म बनी ,लेकिन दुर्भाग्य कि मणिपुर को लेकर ऐसी कोई फिल्म नहीं बनी,क्योंकि फिल्म निर्माता उन विषयों पर ही फिल्म बनाते हैं जिनमें खलनायक कोई मुसलमान हो और नायक कोई मोदी या शाह।
फिल्म निर्माताओं के उद्देश्य को लेकर ऊँगली तभी उठती है जब सत्तारूढ़ दल और उसकी सरकारों से उनके रिश्ते उजागर होते है। पहले के जमाने में इस तरह की फ़िल्में न बनतीं थीं और न कोई प्रधानमंत्री उनका प्रमोशन करता थ।  किन्तु अब जमाना बदल गया है।  आपको याद होगा कि इससे पहले  'दि कश्मीर फ़ाइल ' का प्रचार खुद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने किया था ।  फिल्म के निर्माताओं के साथ उनकी बड़ी-बड़ी तस्वीरें छपी थीं। ' दि साबरमती ' की निर्माता एकता कपूर को भी मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री की शाबासी मिल ही रही है। जाहिर है कि एकता कपूर ने ये फिल्म दर्शकों के लिए नहीं बल्कि मोदी और शाह के लिए बनाई है। फिल्म में जिस तरीके से इन दोनों के किरदारों को महिमा मंडित किया गया है उससे साफ़ जाहिर होता है कि फिल्म  बनाने के पीछे इरादा क्या है ?
हमारे यहां अभिव्यक्ति की आजादी है।  ये आजादी भी ' सिलेक्टिव्ह ' है। किसी  को है ,किसी को नहीं है।  कोई नफरत फ़ैलाने के लिए आजाद है तो किसी को मुहब्बत फ़ैलाने की इजाजत नहीं मिलती। चूंकि ' दि साबरमती ' मोदी और शाह के महिमा  मंडन के लिए बनी है इसलिए इस फिल्म का न सिर्फ मोदी और शाह समर्थन कर रहे हैं बल्कि भाजपा शासित राज्यों में इस फिल्म को कर मुक्त भी किया जा रहा है।  पहले करमुक्त वे ही फ़िल्में होतींथीं जो राष्ट्रीयता को मुखरित करतीं थी।  सद्भाव का सन्देश देतीं थीं ,लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। यदि ऐसा न होता तो केंद्र कि सरकार ने साबरमती एक्सप्रेस   यानि गोधरा काण्ड पर बनी बीबीसी कि फिल्म  का प्रदर्शन भारत में क्यों नहीं होने दिया था।? बीबीसी की  फिल्म में मोदी और शाह नायक नहीं बल्कि खलनायक की  तरह दिखाए गए थे।
एक जमाना था जब हमें और हमारी पीढ़ी  को फ़िल्में देखने का बहुत सवार होता था ।  तब न टीवी था, न मोबाइल। इसलिए लोग या तो किताबें खासकर उपन्यास  पढ़ते थे या फ़िल्में देखते थे। अब लोग न किताबें पढ़ते हैं और न फ़िल्में देखते हैं। अब उन्हें फ़िल्में दिखाई जातीं है।  खुद प्रधानमंत्री जी को उनका प्रचार करना पड़ता है ।  फिल्मों के जरिए नेताओं को नायक और खलनायक के रूप में दिखने कि प्रथा पुरानी है। एक  जमाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को लेकर फिल्म ' किस्सा कुर्सी का ' का बनाई गयी थी। बाद में एक फिल्म ' आंधी ' भी आयी। किस्सा कुर्सी का बॉक्स आफिस पर हिट नहीं हुई लेकिन ' आंधी ' को गुलजार के गीत चला ले गए।  ' दि कश्मीर फ़ाइल ' हो या ' केरल फ़ाइल ' या अब 'दि साबरमती ' ये बॉक्स आफिस पर हिट होने वाली फ़िल्में नहीं हैं।  इन फिल्मों  के दर्शक वे ही जन हैं जो मोदी भक्त हैं। उन्हें के लिए इस फिल्म को करमुक्त किया जा रहा है। भाजपा संसद सुश्री कंगना रनौत भी ' इमरजेंसी ' बनाकर बैठीं हैं। उन्हें सरकार की मर्जी के हिसाब से फिल्म बनाने में समय लगा। ये फिल्म भी इंदिरा गाँधी   के मान-मर्दन के लिए बनाई गयी है। हमारे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव तो सारा कामकाज छोड़कर इस फिल्म को न सिर्फ देख रहे हैं बल्कि अपने मंत्रिमंडल को भी दिखा रहे हैं। ताकि वे प्रेरणा ले सकें। सीख सकें कि दंगे कैसे कराये जाते हैं ?
' दि साबरमती ' ,में फिल्म में विक्रांत मैसी एक पत्रकार के किरदार में नजर आ रहे हैं।  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दासमोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी फिल्म की तारीफ की है  जिसको लेकर विक्रांत मैसी ने अपने उनका शुक्रिया अदा किया है। मैसी अपनी फिल्म के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि , 'ये अनुभव अद्भुत था. सिनेमा हॉल हाउसफुल था. केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया और भाजपा सांसद मनोज तिवारी स्क्रीनिंग में शामिल हुए।  फिल्म में एक डायलॉग है, ' आप सच को छिपा नहीं सकते, ये एक दिन सामने आ ही जाता है.' ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण फिल्म है ।  जो दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई वो हमारे इतिहास का हिस्सा है।
आपको बता दूँ कि विक्रांत मैसी की केंद्रीय भूमिका वाली  फिल्म  ' दि साबरमती '27 फरवरी, 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड पर आधारित है।  उस रोज गोधरा स्टेशन के पास खड़ी साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर S6 में आग लगा दी गई थी ।  अयोध्या से लौट रहे 59 हिंदू कारसेवक जिंदा जल गए थे।  मरने वालों में 27 महिलाएं और 10 बच्चे भी शामिल थे।  उसके बाद पूरे गुजरात में जो दंगा भड़का, वह आजाद भारत के सबसे भयावह दंगों में से एक था। माननीय नरेंद्र दामोदर दास  मोदी उस समय गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे ।  इस दंगे  के बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयीं नेमोदी को ' राजधर्म ' निभाने की नसीहत दी थी ,जो वे आज तक नहीं निभा पाए। खासतौर पर मणिपुर के मामले में।  ये फिल्म समाज में प्रेम पैदा करेगी या नफरत ये आपको तय करना है। आपको फुरसत हो तो  ये फिल्म जरूर देखें। शायद आपका मन भी हकीकत से रूबरू हो  जाये ? कांग्रेसी अभी इस तरह की फ़िल्में बनवाने में कोसों पीछे हैं।  उन्हें अब तक समझ ही नहीं आया है की फिल्मों के जरिये भी राजनीतिक  एजेंडे जनता के बीच परोसे जा सकते हैं।
@ राकेश अचल
 

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