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गांधी जी ने समग्र विकास का सपना देखा, उसे पूर्ण करने की आवश्यकता है – साहित्यकार प्रो प्रमोद त्रिवेदी

Updated on 30-01-2025 10:30 PM


विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में गांधी जी की पुण्यतिथि पर महात्मा गांधी के जीवन और चिंतन के विविध आयामों पर केंद्रित विशिष्ट परिसंवाद और व्याख्यान का आयोजन 30 जनवरी गुरुवार को प्रातः 11 बजे महाराजा जीवाजीराव पुस्तकालय परिसर में सम्पन्न हुआ। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं समालोचक प्रो प्रमोद त्रिवेदी थे। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने की। परिसंवाद में कुलसचिव डॉ अनिल कुमार शर्मा, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, एनईपी सारथी श्रुति शर्मा एवं श्रेया शर्मा ने विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। पुस्तकालय प्रांगण में सामूहिक मौन धारण कर गांधी जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। परिसर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से नशा निषेध पर केंद्रित प्रदर्शनी संयोजित की गई। कला पथक दल द्वारा गांधी जी के प्रिय भजनों एवं मद्य निषेध गीतों की प्रस्तुति की गई।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं समालोचक प्रो प्रमोद त्रिवेदी ने कहा महात्मा गांधी अंदर और बाहर से एक थे। आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से गांधी जी का चिंतन अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे ग्राम स्वराज के हामी थे। गांधी जी ने समग्र विकास का सपना देखा था, उसे पूर्ण करने की आवश्यकता है। प्रसिद्ध कवि श्री नरेश मेहता ने गोस्वामी तुलसीदास और गांधी को कवि कहा था। गांधी जी ने देश में एक बड़ी कविता रची। उन्होंने देशवासियों को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। सबकी पीड़ा को दूर करने का प्रयास महात्मा गांधी ने किया। कार्यक्रम में श्री प्रमोद त्रिवेदी ने गांधी जी की कविता सेवक की प्रार्थना तथा गांधीजी पर केंद्रित स्वरचित कविता का पाठ किया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने कहा कि महात्मा गांधी अनुशासन प्रिय थे। वे सादगी की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। जीवन में स्वच्छता के महत्व को लेकर उन्होंने सार्थक कार्य किया, जो वर्तमान युग में स्वच्छता अभियान के लिए प्रेरणा दे रहा है। उन्होंने आत्मावलोकन की दिशा दी है। हमें गांधीजी के चिंतन के साथ जुड़ने के लिए मौन धारण कर आत्मावलोकन करना चाहिए।

कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि व्यापक अर्थों महात्मा गांधी का चिंतन कालजयी है। वे केवल वैचारिक प्रादर्श नहीं देते हैं, वरन सम्पूर्ण जीवन को बदलने की अभिप्रेरणा देते हैं। उसके विचारों का महत्व सांस्कृतिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, आध्यात्मिक और मूल्यपरक भी है। गांधी चिंतन में धारणीय विकास के अनेक सूत्र उपलब्ध हैं। उन्होंने अहिंसात्मक और रचनात्मक प्रतिरोध के माध्यम से विश्व में परिवर्तन की नई राह बनाई जो आज अधिक प्रासंगिक होती जा रही है। समावेशी और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना उनका लक्ष्य है।

कुलसचिव डॉ अनिल कुमार शर्मा ने कहा कि महात्मा गांधी ने पूरे देश का भ्रमण कर भारतीय जनमानस को जाना। उसके बाद उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध संकल्पित होकर कार्य किया। उनके आह्वान पर पूरा देश खड़ा हुआ। गांधी जी के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। सत्य आचरण की शिक्षा गांधी जी ने दी। उनकी दृष्टि में सभी मनुष्य समान है, यह प्रेरणा सभी युगों में उपयोगी है।

इस अवसर पर अतिथियों द्वारा प्रो प्रमोद त्रिवेदी को शॉल, साहित्य एवं मौक्तिक माल अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया। कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने उपस्थित जनों को नशा निषेध की शपथ दिलाई। अतिथियों द्वारा गांधी जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। पुस्तकालय परिसर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, मध्यप्रदेश शासन के मार्गदर्शन एवं जाग्रति नशामुक्ति केंद्र के सहयोग से नशा निषेध पर केंद्रित प्रदर्शनी लगाई गई।

कला पथक दल द्वारा गांधी जी के प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेणे कहिए, रघुपति राघव राजाराम, एवं मद्य निषेध गीत की प्रस्तुति की गई। कला पथक दल के कलाकारों में मुख्य कलाकार नगाड़ा सम्राट नरेन्द्रसिंह कुशवाह, सुश्री अर्चना मिश्रा, सुरेश कुमार, सुनील फरण, अनिल धवन, आनंद मिश्रा आदि सम्मिलित थे। श्री कमल जोशी ने नशा मुक्ति गीत सुनाया।

अतिथियों का स्वागत कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष प्रो सत्येंद्र किशोर मिश्रा, पुस्तकाध्यक्ष प्रो अनिल कुमार जैन, डीसीडीसी प्रो देवेंद्र मोहन कुमावत, प्रो गीता नायक, प्रो उमा शर्मा, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, प्रो डी डी बेदिया, प्रो अंजना पांडेय, प्रो बी के आंजना, डॉ राज बोरिया, श्री कमल जोशी आदि ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत में पुस्तकालय प्रांगण में सामूहिक मौन धारण कर स्वतन्त्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। आयोजन में बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जनों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों ने सहभागिता की।

संचालन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डीएसडब्ल्यू प्रो सत्येंद्र किशोर मिश्रा ने किया।

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